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- Demand To Create PERA To Curb Arbitrary Private Schools At The Pattern Of RERA In Bihar
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पटना23 मिनट पहले
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- शिक्षा मंत्री और राज्यपाल को भी आवेदन दिया जाएगा, कोर्ट भी जाने की तैयारी
- कई अभिभावक महंगी फीस वाले स्कूल छोड़ना चाह रहे, पर फाइनल रिजल्ट नहीं मिल रहा
राज्य में प्राइवेट स्कूलों की मनमानी के खिलाफ PERA (प्राइवेट एजुकेशन रेगुलेटरी ऑथोरिटी) बनाने की मांग हो रही है। यह मांग संस्था जागो के तत्वावधान में बना ‘शैडो गवर्नमेंट बिहार’ कर रहा है। इसको लेकर सोशल मीडिया पर कंपेन चलाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि पूरी फीस जमा नहीं होने पर स्कूल बच्चों का रिजल्ट और TC नहीं दे रहे हैं। कई अभिभावक कोरोनाकाल में आई आर्थिक तंगी के कारण अब महंगी फीस वाले स्कूलों से बच्चों को निकालना चाह रहे, पर TC और रिजल्ट न मिलने की वजह से ऐसा नहीं कर पा रहे। दो दिन पहले हुई बैठक में इन सब बातों पर विमर्श किया गया और तय किया गया कि सरकार पर इसके लिए दबाव बनाया जाए कि वह PERA का गठन करे। इसमें सोशल एक्टिविस्ट डॉ. सुमन लाल, डॉ. रत्नेश चौधरी, नीरज सिंह, गगन गौरव अमित विक्रम, अवनीश आदि कई शामिल रहे।
स्कूल जितनी सुविधा दे रहे, उसी अनुसार फीस तय होनी चाहिए
बैठक में गगन गौरव ने PERA बनाने का प्रस्ताव दिया। इसमें कहा गया कि निजी विद्यालय को फीस वसूलने का आधार उनके न्यूनतम मानक को दी जाने वाली सुविधाओं के अनुसार हो। कोविड की वर्तमान परिस्थितियों में मध्यम और निम्न वर्ग के परिवार लगातार आर्थिक संकट में जी रहे हैं। कई की कमाई का जरिया छिन गया है तो कई की नौकरियां चली गई हैं। ऐसे में जब स्कूल भी सुचारू रूप से नहीं चल रहे हैं तो ऐसे परिवारों के बच्चों से कितनी फीस ली जाए। बेलगाम चल रहे इन निजी विद्यालयों के प्रबंधन को कोई यह भी कहने वाला नहीं है कि आप कम से कम कोविड पीरियड में नो प्रॉफिट-नो लॉस के कंसेप्ट पर अपने स्कूल को चलाएं।
तय राशि नहीं देने पर रिजल्ट रोक रहे हैं स्कूल
अभिभावकों की शिकायतों पर गौर करें तो करोना काल में अभिभावकों ने स्कूलों में ट्यूशन फी जमा किया। उन्हें अन्य राशि देने का दबाव नहीं दिया गया। लेकिन जब रिजल्ट आया को स्कूल ने एक-दो हजार की छूट देते हुए बाकी पूरी राशि जमा करने को कहा। जिन्होंने यह राशि जमा नहीं की उनके बच्चे का रिजल्ट और TC (ट्रांसफर सर्टिफिकेट) रोक लिया गया और तभी दिया गया जब तय पूरी फीस का भुगतान किया गया। कई अभिभावकों का कहना है कि स्कूल चले नहीं, ऑनलाइन पढ़ाई के नाम पर कभी पढ़ाई हुई, कभी नहीं हुई। हमने अपने पैसे से ऑनलाइन पढ़ाई के लिए महंगा इंटरनेट कनेक्शन लिया। पर स्कूल हर तरह का चार्ज मांग रहे हैं। कंप्यूटर, लाइब्रेरी, बिल्डिंग मेंटनेंस और न जाने किस-किस तरह के चार्ज ले रहे हैं। लाखों अभिभावक ऐसे भी हैं जो अब महंगी फीस देने की स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में उनके पास अपने बच्चों को कम फीस वाले स्कूलों में पढ़ाने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
एक स्कूल ऐसा फॉर्म भरवा रहा कि एकाउंट से फीस कट जाएगी
पटना के एक स्कूल ने तो अभिभावकों से एक फॉर्म भरवाया है जिसके तहत यह व्यवस्था की गई है कि स्कूल की फीस अभिभावकों के एकाउंट से ही कट जाएगी। भविष्य में कोरोना या लॉकडाउन के संकट को देखते हुए स्कूल ने यह चाल चली है। अभिभावक चाह कर भी ऐसे स्कूल के खिलाफ कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं हैं। उस स्कूल का सीनियर सेक्शन गोला रोड, दानापुर रोड में चलता है। स्कूल ने पिछली फीस में भी बहुत अधिक छूट नहीं दी जबकि क्लास ऑनलाइन ही चलाए गए थे।
स्कूल नो प्रॉफिट, नो लॉस की जगह दोहन में लगा है
छात्र-अभिभावक संघर्ष समिति के प्रेसिडेंट नीरज कुमार कहते हैं कि यह ठीक है कि कोरोना काल में भी स्कूलों को अपने शिक्षकों और अन्य कर्मियों को सैलरी देनी पड़ी लेकिन जब हर कोई परेशानी में है तो स्कूल को भी चाहिए कि वह नो प्रॉफिट-नो लॉस के हिसाब से ही फीस ले। लेकिन स्कूल ऐसा नहीं कर रहे और अभिभावकों का दोहन हो रहा है। सरकार यह सब कुछ होते हुए देख रही है। इसलिए रियल स्टेट में जिस तरह से RERA बनाया गया उसी तर्ज पर एजुकेशन सिस्टम में PERA बनाया जाए।
शिक्षा मंत्री, राज्यपाल भी नहीं सुनेंगे तो कोर्ट जाएंगे
शैडो गवर्नमेंट इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर प्रचार-प्रसार तो कर ही रहा है, साथ ही इसे अंजाम तक पहुंचाने की कोशिश भी कर रहा है। गगन गौरव कहते हैं कि राज्य के शिक्षा मंत्री और राज्यपाल को भी इसके लिए आवेदन दिया जाएगा। अगर सरकार ने उनकी मांग को अनसुना कर दिया तो कोर्ट भी जाएंगे। यह हर घर से जुड़ा मुद्दा है। किसी घर में तीन बच्चे हैं तो अभिभावक तीनों की तीन-तीन महीने की फीस कैसे भरेंगे यह न सरकार सोच रही, न स्कूल।